Tuesday, July 31, 2018

ग़ज़ल

आह और वाह  का तमाशा है
और सिवा इसके ज़िन्दगी क्या है

वो जो परदे के पीछे रहता है
वो ही क़ातिल है वो ही मसीहा है

पेशे ख़िदमत है जानो दिल साहिब
और किस चीज़ की तमन्ना है

ए  ख़ुदा खैर हो मेरे ख़त की
ग़ैर के हाथ में लिफ़ाफ़ा

मुझको बेनाम कर दिया आख़िर
और दुनिया का क्या इरादा है

सोनी उस नामुराद के दिल में
अब भी जीने की तमन्ना है 

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