Tuesday, March 8, 2016

है राम जो अबके आना सीता को दुःख मत देना 
क़सम  तुम्हे रामायण की सातों ही जनम निभा लेना।  है राम

नारी के बिन नारायण कैसे कहला पाओगे 
कितने जन्मों तक सोने की सीता बनवाओगे 
बिन नारी जीवन, घर सूना, कैसे जगत चलाओगे। है राम 

पत्थर को नारी  करने वाले पत्थर बन बैठे 
नैन मूँद कर ले लिए भगवन मर्यादा के ठेके 
अपने ही अंतर्मन को आखिर कब तक ठुकराओगे।  है राम 

तुमने नारी को ये कैसी प्रीत की शिक्षा दी है 
नारी ने ही दुनिया में क्यों अग्नि परीक्षा दी है 
ओ दुनिया के पुरुषों कब तक नारी चिता सजाओगे।  है राम 





1 comment:

विभा रानी श्रीवास्तव said...

आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 21 मई 2016 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!