इक ज़रा धूप जो निकल जाए
बर्फ़ ग़म की अभी पिघल जाए
ऐसा चेहरा है मेरी आंखों में
चांद देखे तो चांद जल जाए
एक कांटा जो दिल के अंदर है
दिल से निकले तो दम निकल जाए
उसको ठोकर सलाम करती है
बाद गिरने के जो सम्भल जाए
ज़ख्मे दिल वो चराग़ हैं सोनी
शाम से पहले ही जो जल जाए
Monday, February 16, 2009
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