वतन के दुश्मनों के नाम सद्भभावना और इन्सानियत का सन्देश
बोलो हमसे ज़रा मीठी बोली
काहे हरदम चलाते हो गोली
तुम्हरी तलवार हमरी कटारी
दोनों बैरी हैं दोनो शिकारी
साथ छूटे जो इन बैरनों का
गुल खिलायेगी चाहत हमारी
शहद बन जायेगी हर निबोली
बोलो हमसे ज़रा मीठी बोली
काहे हरदम चलाते हो गोली
कल की पहचान बन जायें हम तुम
प्यार की शान बन जायें हम तुम
धर्म ज़ातों मे खु़द को न बांटें
काश इन्सान बन जायें हमतुम
खा़ली रहने न दो दिल की झोली
बोलो हमसे ज़रा मीठी बोली
काहे हरदम चलाते हो गोली
राजनीति लगाये निशाने
तीर खाते हैं हम सब दिवाने
ये समझ हमको आयेगी जिस दिन
लौट आयेंगे बीते ज़माने
आओ खेलें मुहब्बत की होली
बोलो हमसे ज़रा मीठी बोली
काहे हरदम चलाते हो गोली
Wednesday, December 24, 2008
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3 comments:
This is a beautiful poem. This is relevant to personal, family, and national relationships.
It is a good poem. Be a Man Ya Be a Human Make it a heaven
Panchraj.
Thanks so much for your kind words 🌹🙏 so sorry for late reply 🙏🌹
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